श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 14: आदर्श पारिवारिक जीवन  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  7.14.2 
 
 
श्रीनारद उवाच
गृहेष्ववस्थितो राजन्क्रिया: कुर्वन्यथोचिता: ।
वासुदेवार्पणं साक्षादुपासीत महामुनीन् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि जी ने उत्तर दिया: हे राजा, जो लोग घर-बार को संभालते हुए गृहस्थी का जीवनयापन करते हैं, उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए कर्म करना चाहिए और उस कर्मफल का स्वयं उपभोग करने के बजाय उस कर्मफल को वासुदेव श्रीकृष्ण को अर्पित करना चाहिए। इस जीवन में वासुदेव को कैसे प्रसन्न किया जाए, यह भगवान के महान भक्तों की संगति से अच्छी तरह से समझा जा सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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