श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 8: नारायण-कवच  »  श्लोक 1-2
 
 
श्लोक  6.8.1-2 
 
 
श्रीराजोवाच
यया गुप्त: सहस्राक्ष: सवाहान् रिपुसैनिकान् ।
क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम् ॥ १ ॥
भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम् ।
यथाततायिन: शत्रून्येन गुप्तोऽजयन्मृधे ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा परीक्षित ने शुकदेव गोस्वामी से प्रश्न किया - हे भगवान! कृपया करके मुझे वह विष्णु-मंत्र बताइए जिसके कारण राजा इंद्र की रक्षा हुई और वो अपने शत्रुओं और उनके वाहनों को हराकर तीनों लोकों के ऐश्वर्य का उपभोग कर पाए। मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे वो नारायण कवच बताएं जिसके द्वारा इंद्र ने युद्ध में उन शत्रुओं को हराया और विजय प्राप्त की जो उसे जान से मारने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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