तत्सङ्गभ्रंशितैश्वर्यं संसरन्तं कुभार्यवत् ।
तद्गतीरबुधस्येह किमसत्कर्मभिर्भवेत् ॥ १५ ॥
अनुवाद
[नारद मुनि ने एक ऐसे व्यक्ति का भी उदाहरण दिया था जो वेश्या का पति होता है। हर्यश्वों ने इसे इस प्रकार समझाया।] यदि कोई व्यक्ति किसी वेश्या का पति बनता है, तो वह अपनी सारी स्वतंत्रता खो देता है। उसी तरह, यदि किसी जीव की बुद्धि दूषित होती है, तो वह अपने भौतिकवादी जीवन को लम्बा कर लेता है। भौतिक प्रकृति से हताश होकर उसे बुद्धि के संकेतों का अनुसरण करना पड़ता है, जो सुख और दुख की विभिन्न स्थितियों को लाते हैं। यदि कोई ऐसी स्थिति में सकाम कर्म करता है, तो उसे क्या लाभ होगा?