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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य
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अध्याय 5: प्रजापति दक्ष द्वारा नारद मुनि को शाप
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श्लोक 10
श्लोक
6.5.10
श्रीशुक उवाच
तन्निशम्याथ हर्यश्वा औत्पत्तिकमनीषया ।
वाच: कूटं तु देवर्षे: स्वयं विममृशुर्धिया ॥ १० ॥
अनुवाद
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श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: नारदमुनी के गूढ़ शब्दों को सुनकर हर्यश्वों ने अपनी स्वाभाविक बुद्धि से दूसरों की मदद के बिना विचार किया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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