श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 3: यमराज द्वारा अपने दूतों को आदेश  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  6.3.2 
 
 
यमस्य देवस्य न दण्डभङ्ग:
कुतश्चनर्षे श्रुतपूर्व आसीत् ।
एतन्मुने वृश्चति लोकसंशयं
न हि त्वदन्य इति मे विनिश्चितम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महामुनि! इसके पहले कहीं भी यह सुना नहीं गया है कि यमराज के आदेश का उल्लंघन हुआ हो। इसलिए मैं समझता हूँ कि लोगों को इस पर संदेह होगा जिसका निवारण अन्य कोई नहीं, बल्कि आप ही कर सकते हैं। चूँकि इस पर मेरा अटल विश्वास है, इसलिए कृपा करके इन घटनाओं के मूल कारणों का विवरण करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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