यं वै न गोभिर्मनसासुभिर्वा
हृदा गिरा वासुभृतो विचक्षते ।
आत्मानमन्तर्हृदि सन्तमात्मनां
चक्षुर्यथैवाकृतयस्तत: परम् ॥ १६ ॥
अनुवाद
जैसा कि शरीर के विभिन्न अंग आंखों को नहीं देख सकते हैं, उसी तरह सारे जीव उस परम आत्मा को नहीं देख सकते जो हर एक के हृदय में रहती है। न तो इंद्रियों से, न मन से, न प्राणवायु से, न हृदय में विचारों से, और न ही शब्दों के कंपन से जीव परम आत्मा की वास्तविक स्थिति का पता लगा सकते हैं।