श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 2: विष्णुदूतों द्वारा अजामिल का उद्धार  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  6.2.8 
 
 
एतेनैव ह्यघोनोऽस्य कृतं स्यादघनिष्कृतम् ।
यदा नारायणायेति जगाद चतुरक्षरम् ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  विष्णुदूतों ने आगे कहा : यहाँ तक कि पहले भी, खाते समय तथा अन्य अवसरों पर अजामिल अपने पुत्र को “प्रिय नारायण! यहाँ तो आओ” यह कहकर पुकारता था। यद्यपि वह अपने पुत्र का नाम पुकारता था, फिर भी वह ना, रा, य तथा ण इन चार अक्षरों का उच्चारण करता था। इस प्रकार मात्र नारायण नाम के उच्चारण से उसने लाखों जन्मों के पापपूर्ण कर्मों का पर्याप्त प्रायश्चित्त किया है।
 
 
 
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