विष्णुदूतों ने आगे कहा : यहाँ तक कि पहले भी, खाते समय तथा अन्य अवसरों पर अजामिल अपने पुत्र को “प्रिय नारायण! यहाँ तो आओ” यह कहकर पुकारता था। यद्यपि वह अपने पुत्र का नाम पुकारता था, फिर भी वह ना, रा, य तथा ण इन चार अक्षरों का उच्चारण करता था। इस प्रकार मात्र नारायण नाम के उच्चारण से उसने लाखों जन्मों के पापपूर्ण कर्मों का पर्याप्त प्रायश्चित्त किया है।