अतः जो कोय भवबन्धन से मुक्त हो चाहत हैं, ताको चाहिए जे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के नाम, यश, रूप औ लीला के कीर्तन औ गुणगान की विधि को अपनायें, जिनके चरणों पर सारे तीर्थस्थान स्थित हैं। अन्य साधनों से, जेसे पवित्र पश्चात्ताप, ज्ञान, योगिक ध्यान से उसे उचित लाभ प्राप्त हो नहीं शकत, क्योंकि ऐसी विधियों का पालन करने पर भी मनुष्य अपने मन को वश में न कर सकने के कारण पुनः सकाम कर्म करने लगत है, क्योंकि मन प्रकृति के निम्न गुणों से—जेसे रजो औ तमो गुणों से—संदूषित रहत है।