श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 2: विष्णुदूतों द्वारा अजामिल का उद्धार  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  6.2.38 
 
 
ममाहमिति देहादौ हित्वामिथ्यार्थधीर्मतिम् ।
धास्ये मनो भगवति शुद्धं तत्कीर्तनादिभि: ॥ ३८ ॥
 
अनुवाद
 
  चूँकि मैंने भक्तों की संगति में भगवान् के पवित्र नाम का केवल कीर्तन किया है, इसलिए मेरा हृदय अब शुद्ध हो रहा है। इसीलिए अब मैं भौतिक इन्द्रियों के झूठे आकर्षणों का शिकार नहीं बनूँगा। चूँकि अब मैं परम सत्य में स्थित हो चुका हूँ, इसलिए इसके बाद मैं शरीर के साथ अपनी पहचान नहीं रखूँगा। मैं "मैं" और "मेरा" के झूठे विचारों को त्यागकर अपना मन कृष्ण के चरणकमलों में स्थिर करूँगा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.