श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 2: विष्णुदूतों द्वारा अजामिल का उद्धार  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  6.2.27 
 
 
धिङ्‌मां विगर्हितं सद्भ‍िर्दुष्कृतं कुलकज्जलम् ।
हित्वा बालां सतीं योऽहं सुरापीमसतीमगाम् ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  हाय! मुझे धिक्कार है। मैंने इतना पापपूर्ण कार्य किया है कि अपनी मैने कुल-परम्परा को लज्जित किया है। दरअसल, मैंने शराब पीने वाली पतित वेश्या के साथ संभोग करने के लिए अपनी सती तथा सुन्दर युवा पत्नी को त्याग दिया है। धिक्कार है मुझे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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