श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 18: राजा इन्द्र का वध करने के लिए दिति का व्रत  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  6.18.31 
 
 
एवं शुश्रूषितस्तात भगवान् कश्यप: स्त्रिया ।
प्रहस्य परमप्रीतो दितिमाहाभिनन्द्य च ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मेरी प्रिय! अपनी पत्नी दिति के नम्र व्यवहार से अत्यंत प्रसन्न होकर परम शक्तिशाली संत कश्यप मुस्कुराए और उससे इस प्रकार बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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