श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 18: राजा इन्द्र का वध करने के लिए दिति का व्रत  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  6.18.22 
 
 
श्रीसूत उवाच
तद्विष्णुरातस्य स बादरायणि-
र्वचो निशम्याद‍ृतमल्पमर्थवत् ।
सभाजयन् सन्निभृतेन चेतसा
जगाद सत्रायण सर्वदर्शन: ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री सूत गोस्वामी ने कहा- हे महर्षि शौनक! महाराज परीक्षित को आवश्यक विषयों पर विनम्रतापूर्वक और संक्षेप में बोलते देख, हर चीज के जानकार शुकदेव गोस्वामी ने उनके प्रयासों की सराहना की और इस प्रकार उत्तर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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