श्रीसूत उवाच
तद्विष्णुरातस्य स बादरायणि-
र्वचो निशम्यादृतमल्पमर्थवत् ।
सभाजयन् सन्निभृतेन चेतसा
जगाद सत्रायण सर्वदर्शन: ॥ २२ ॥
अनुवाद
श्री सूत गोस्वामी ने कहा- हे महर्षि शौनक! महाराज परीक्षित को आवश्यक विषयों पर विनम्रतापूर्वक और संक्षेप में बोलते देख, हर चीज के जानकार शुकदेव गोस्वामी ने उनके प्रयासों की सराहना की और इस प्रकार उत्तर दिया।