बाणज्येष्ठं पुत्रशतमशनायां ततोऽभवत् ।
तस्यानुभावं सुश्लोक्यं पश्चादेवाभिधास्यते ॥ १७ ॥
अनुवाद
इसके बाद, अशना के गर्भ से महाराज बलि को सौ पुत्रों की प्राप्ति हुई, जिनमें से राजा बाण सबसे बड़े थे। बलि महाराज का चरित्र बहुत प्रशंसनीय है और उसका वर्णन आगे (आठवें स्कंध में) किया जाएगा।