श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 18: राजा इन्द्र का वध करने के लिए दिति का व्रत  »  श्लोक 12-13
 
 
श्लोक  6.18.12-13 
 
 
हिरण्यकशिपोर्भार्या कयाधुर्नाम दानवी ।
जम्भस्य तनया सा तु सुषुवे चतुर: सुतान् ॥ १२ ॥
संह्रादं प्रागनुह्रादं ह्रादं प्रह्रादमेव च ।
तत्स्वसा सिंहिका नाम राहुं विप्रचितोऽग्रहीत् ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्यकश्यपु की पत्नी का नाम कायाधु था। वह जम्भ की पुत्री और दनु की वंशज थी। उसके एक के बाद एक करके चार बेटे हुए, जिनके नाम संह्लाद, अनुह्लाद, ह्लाद और प्रह्लाद थे। इन चारों भाइयों की एक बहन भी थी, जिसका नाम सिंहिका था। सिंहिका ने विप्रचित नामक असुर से विवाह किया और राहु नामक असुर को जन्म दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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