न तस्य कश्चिद्दयित: प्रतीपो
न ज्ञातिबन्धुर्न परो न च स्व: ।
समस्य सर्वत्र निरञ्जनस्य
सुखे न राग: कुत एव रोष: ॥ २२ ॥
अनुवाद
पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कोई भेदभाव नहीं रखते, इसलिए उनके लिए कोई विशेष मित्र नहीं है, कोई विशेष शत्रु नहीं है, और कोई विशेष संबंधी नहीं है। ऐसी स्थिति में, किसी के प्रति उनका विशेष लगाव नहीं है और न ही कोई विशेष नफरत है। भगवान् सांसारिक सुख-दुख से परे हैं, इसलिए उन्हें सुख से मोह नहीं है और न ही दुख से घृणा है। सुख और दुख आपेक्षिक हैं, लेकिन भगवान हमेशा आनंदित रहते हैं, इसलिए उनके लिए दुख का कोई मतलब नहीं है।