स लक्षं वर्षलक्षाणामव्याहतबलेन्द्रिय: ।
स्तूयमानो महायोगी मुनिभि: सिद्धचारणै: ॥ २ ॥
कुलाचलेन्द्रद्रोणीषु नानासङ्कल्पसिद्धिषु ।
रेमे विद्याधरस्त्रीभिर्गापयन् हरिमीश्वरम् ॥ ३ ॥
अनुवाद
महान साधुओं, मुनियों और सिद्धलोक व चारणलोक के समस्त वासियों द्वारा श्रद्धा प्राप्त, अत्यंत पराक्रमी योगी चित्रकेतु लाखों वर्षों तक आनंद-मय जीवन व्यतीत करता रहा। अपक्षयी शरीर और इंद्रियों के साथ, वह सुमेरु पर्वत की घाटियों में विचरण करता रहा, वह स्थान जो विविध योग शक्तियों के सिद्ध होने का स्थल है। उन घाटियों में उसने भगवान हरि की महिमा का जप करते हुए विद्याधरलोक की रमणियों के साथ जीवन का आनंद भोगा।