एवं योनिगतो जीव: स नित्यो निरहङ्कृत: ।
यावद्यत्रोपलभ्येत तावत्स्वत्वं हि तस्य तत् ॥ ८ ॥
अनुवाद
यद्यपि एक जीव दूसरी आत्मा से मरणशील शरीर संबंधों की वजह से जुड़ा हुआ दिखाई पड़ता है, किंतु आत्मा अनंत है। वास्तव में, शरीर ही जन्म लेता है और नष्ट होता है, आत्मा नहीं। हमें यह नहीं मानना चाहिए कि आत्मा का जन्म या मृत्यु हो सकती है। आत्मा का तथाकथित पिता-माता से कोई संबंध नहीं है। जब तक आत्मा अपने पिछले कर्मों के फलस्वरूप किसी पिता और माता के पुत्र के रूप में प्रकट होती है, तब तक माता-पिता द्वारा दिए गए शरीर से उसका रिश्ता रहता है। इस तरह वह अपने-आप को उनके पुत्र के रूप में मान लेता है और स्नेह का भाव दिखाता है। मरने के बाद यह रिश्ता खत्म हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में मनुष्य को झूठे उल्लास और विलाप में डूबे रहना नहीं चाहिए।