इस प्रकार का धर्म, जिससे स्वयं के साथ-साथ अन्य लोगों में भी ईर्ष्या पैदा होती है, किस प्रकार से स्वयं और उन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है? इस तरह के धर्म का अभ्यास करके क्या अच्छा हो सकता है? आखिरकार इससे क्या हासिल होगा? अपने प्रति ईर्ष्या के चलते और दूसरों को तकलीफ पहुंचाकर व्यक्ति आप (भगवान) के क्रोध को भड़काता है और एक अधार्मिक व्यक्ति बन जाता है।