श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 16: राजा चित्रकेतु की परमेश्वर से भेंट  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  6.16.3 
 
 
कलेवरं स्वमाविश्य शेषमायु: सुहृद्‌वृत: ।
भुङ्‌क्ष्व भोगान् पितृप्रत्तानधितिष्ठ नृपासनम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  तुम असमय ही काल के गाल में समा गए, इसीलिए तुम्हारी आयु अभी बाकी है। अतः तुम फिर से अपने शरीर में प्रवेश कर जाओ और अपने प्रियजनों के साथ मिलकर अपने जीवन का आनंद लो। अपने पिता द्वारा प्रदत्त यह राजपाट और वैभव स्वीकार करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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