जैसे आग में तपा कर लाल-गर्म किए गए लोहे में जलाने का सामर्थ्य हो जाता है, उसी प्रकार से शरीर, इंद्रियाँ, प्राणशक्ति, मन और बुद्धि- ये सभी पदार्थ के पिंड भर होने के बावजूद, भगवान द्वारा चेतना के कण मिलने पर ही अपनी-अपनी गतिविधियाँ करने लगते हैं। जैसे लोहा तब तक जला नहीं सकता जब तक कि उसे आग से गर्म न किया जाए, उसी प्रकार ये शारीरिक इंद्रियाँ भी परमेश्वर की कृपा दृष्टि के बिना काम नहीं कर सकती हैं।