श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 16: राजा चित्रकेतु की परमेश्वर से भेंट  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  6.16.24 
 
 
देहेन्द्रियप्राणमनोधियोऽमी
यदंशविद्धा: प्रचरन्ति कर्मसु ।
नैवान्यदा लौहमिवाप्रतप्तं
स्थानेषु तद् द्रष्ट्रपदेशमेति ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे आग में तपा कर लाल-गर्म किए गए लोहे में जलाने का सामर्थ्य हो जाता है, उसी प्रकार से शरीर, इंद्रियाँ, प्राणशक्ति, मन और बुद्धि- ये सभी पदार्थ के पिंड भर होने के बावजूद, भगवान द्वारा चेतना के कण मिलने पर ही अपनी-अपनी गतिविधियाँ करने लगते हैं। जैसे लोहा तब तक जला नहीं सकता जब तक कि उसे आग से गर्म न किया जाए, उसी प्रकार ये शारीरिक इंद्रियाँ भी परमेश्वर की कृपा दृष्टि के बिना काम नहीं कर सकती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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