श्रीशुक उवाच
एवमाश्वासितो राजा चित्रकेतुर्द्विजोक्तिभि: ।
विमृज्य पाणिना वक्त्रमाधिम्लानमभाषत ॥ ९ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा—इस प्रकार नारद और अंगिरा के उपदेशों से समझाये जाने पर राजा चित्रकेतु को ज्ञान के कारण आशा बँधी। राजा अपने हाथों से अपने सूखे मुख को पोंछते हुए कहने लगे।