श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 15: नारद तथा अंगिरा ऋषियों द्वारा राजा चित्रकेतु को उपदेश  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  6.15.9 
 
 
श्रीशुक उवाच
एवमाश्वासितो राजा चित्रकेतुर्द्विजोक्तिभि: ।
विमृज्य पाणिना वक्त्रमाधिम्‍लानमभाषत ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा—इस प्रकार नारद और अंगिरा के उपदेशों से समझाये जाने पर राजा चित्रकेतु को ज्ञान के कारण आशा बँधी। राजा अपने हाथों से अपने सूखे मुख को पोंछते हुए कहने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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