श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 15: नारद तथा अंगिरा ऋषियों द्वारा राजा चित्रकेतु को उपदेश  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  6.15.10 
 
 
श्रीराजोवाच
कौ युवां ज्ञानसम्पन्नौ महिष्ठौ च महीयसाम् ।
अवधूतेन वेषेण गूढाविह समागतौ ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  राजा चित्रकेतु ने कहा- तुम दोनों अपनी पहचान छिपाने के लिए अवधूतों के वेश में यहाँ आए हो, परंतु मैं देख रहा हूँ कि समस्त मनुष्यों में तुम दोनों सबसे अधिक ज्ञानवान हो। तुम सब कुछ जानते हो, इसलिए समस्त महान विभूतियों से भी तुम दोनों महान हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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