श्रीराजोवाच
कौ युवां ज्ञानसम्पन्नौ महिष्ठौ च महीयसाम् ।
अवधूतेन वेषेण गूढाविह समागतौ ॥ १० ॥
अनुवाद
राजा चित्रकेतु ने कहा- तुम दोनों अपनी पहचान छिपाने के लिए अवधूतों के वेश में यहाँ आए हो, परंतु मैं देख रहा हूँ कि समस्त मनुष्यों में तुम दोनों सबसे अधिक ज्ञानवान हो। तुम सब कुछ जानते हो, इसलिए समस्त महान विभूतियों से भी तुम दोनों महान हो।