श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 14: राजा चित्रकेतु का शोक  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  6.14.2 
 
 
देवानां शुद्धसत्त्वानामृषीणां चामलात्मनाम् ।
भक्तिर्मुकुन्दचरणे न प्रायेणोपजायते ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  सत्त्व गुण सम्पन्न देवता और भौतिक सुख-भोग रूपी रज से निष्कलंक ऋषि भी बड़ी ही कठिनाई से मुकुंद के चरण-कमलों में निर्मल भक्ति कर पाते हैं। [तो फिर वृत्रासुर इतना बड़ा भक्त कैसे बन सका?]
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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