श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 13: ब्रह्महत्या से पीडि़त राजा इन्द्र  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  6.13.3 
 
 
श्रीराजोवाच
इन्द्रस्यानिर्वृतेर्हेतुं श्रोतुमिच्छामि भो मुने ।
येनासन् सुखिनो देवा हरेर्दु:खं कुतोऽभवत् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज परीक्षित ने शुकदेव गोस्वामी से पूछा- हे मुनिवर, इन्द्र महाराज अप्रसन्न क्यों थे? मैं उनके दुख का कारण जानना चाहता हूँ। जब उन्होंने वृत्रासुर का वध किया तब तो सभी देवता अत्यंत प्रसन्न थे, फिर स्वयं इन्द्र दुखी क्यों थे?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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