श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 13: ब्रह्महत्या से पीडि़त राजा इन्द्र  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  6.13.2 
 
 
देवर्षिपितृभूतानि दैत्या देवानुगा: स्वयम् ।
प्रतिजग्मु: स्वधिष्ण्यानि ब्रह्मेशेन्द्रादयस्तत: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् सभी देवता, महान् साधु पुरुष, पितृलोक और भूतलोक के निवासी, असुर, देवताओं के अनुयायी और ब्रह्मा, शिव और इंद्र के अधीनस्थ देवगण अपने-अपने धामों को लौट गए। लेकिन जाते समय किसी ने इंद्र से एक शब्द भी नहीं बोला।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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