श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 13: ब्रह्महत्या से पीडि़त राजा इन्द्र  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  6.13.16 
 
 
तावत्‍त्रिणाकं नहुष: शशास
विद्यातपोयोगबलानुभाव: ।
स सम्पदैश्वर्यमदान्धबुद्धि-
र्नीतस्तिरश्चां गतिमिन्द्रपत्‍न्या ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  जब तक राजा इंद्र कमलनाल के भीतर जल में रहा, तब तक नहुष अपने ज्ञान, तप और योग शक्ति के कारण स्वर्गलोक पर शासन करने में सक्षम था। किंतु, शक्ति और ऐश्वर्य के अहंकार में चूर होकर उसने इंद्र की पत्नी के साथ संबंध बनाने का अवांछनीय प्रस्ताव रखा। इस कारण उसे एक ब्राह्मण ने शाप दिया और वह बाद में सर्प बन गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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