श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 13: ब्रह्महत्या से पीडि़त राजा इन्द्र  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  6.13.10 
 
 
श्रीशुक उवाच
एवं सञ्चोदितो विप्रैर्मरुत्वानहनद्रिपुम् ।
ब्रह्महत्या हते तस्मिन्नाससाद वृषाकपिम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा- ऋषियों के कथनों से प्रेरित होकर इन्द्र ने वृत्रासुर का वध कर दिया, और जब वह मारा गया तो निश्चय ही ब्रह्महत्या का पाप इन्द्र पर आ गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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