श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 12: वृत्रासुर की यशस्वी मृत्यु  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  6.12.7 
 
 
युयुत्सतां कुत्रचिदाततायिनां
जय: सदैकत्र न वै परात्मनाम् ।
विनैकमुत्पत्तिलयस्थितीश्वरं
सर्वज्ञमाद्यं पुरुषं सनातनम् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  वृत्रासुर ने आगे कहा- हे इंद्र! आदि भोक्ता पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के अतिरिक्त किसी की सदैव विजय होना निश्चित नहीं है। वे ही उत्पत्ति, पालन और प्रलय के कारण हैं और सब कुछ जानने वाले हैं। अधीन होने तथा भौतिक देहों के धारण करने के लिए विवश होने के कारण युद्धप्रिय अधीनस्थ कभी विजयी होते हैं, तो कभी पराजित होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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