छिन्नैकबाहु: परिघेण वृत्र:
संरब्ध आसाद्य गृहीतवज्रम् ।
हनौ तताडेन्द्रमथामरेभं
वज्रं च हस्तान्न्यपतन्मघोन: ॥ ४ ॥
अनुवाद
हालाँकि उसका एक हाथ तन से कट गया था, फिर भी वृत्रासुर क्रोधपूर्वक राजा इंद्र के पास पहुँचा और लोहे के मुद्गर से उसके जबड़े पर चोट की। उसने इंद्र के हाथी पर भी वार किया। उससे इंद्र के हाथ से उसका वज्र गिर गया।