श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 12: वृत्रासुर की यशस्वी मृत्यु  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  6.12.3 
 
 
ख आपतत्तद्विचलद्ग्रहोल्कव-
न्निरीक्ष्य दुष्प्रेक्ष्यमजातविक्लव: ।
वज्रेण वज्री शतपर्वणाच्छिनद्
भुजं च तस्योरगराजभोगम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  आकाश में उड़ते हुए वृत्रासुर का त्रिशूल एक चमकते हुए उल्का की तरह था। यद्यपि इस अग्निमय हथियार को देखना मुश्किल था, लेकिन राजा इंद्र ने निर्भय होकर अपने वज्र से उसे टुकड़े-टुकड़े कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने वृत्रासुर की एक भुजा भी काट ली, जो सर्पों के राजा वासुकि के शरीर की तरह मोटी थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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