आयु: श्री: कीर्तिरैश्वर्यमाशिष: पुरुषस्य या: ।
भवन्त्येव हि तत्काले यथानिच्छोर्विपर्यया: ॥ १३ ॥
अनुवाद
जिस प्रकार न मरने की चाह रखते हुए भी मनुष्य को मृत्यु के समय अपनी आयु, ऐश्वर्य, यश और दूसरी चीज़ें त्यागनी पड़ती हैं उसी प्रकार यदि भगवान की दया हो तो नियत विजय के समय ये सारी चीज़ें उसे मिल जाती हैं।