श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 12: वृत्रासुर की यशस्वी मृत्यु  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  6.12.1 
 
 
श्रीऋषिरुवाच
एवं जिहासुर्नृप देहमाजौ
मृत्युं वरं विजयान्मन्यमान: ।
शूलं प्रगृह्याभ्यपतत् सुरेन्द्रं
यथा महापुरुषं कैटभोऽप्सु ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा—अपना शरीर छोड़ने की इच्छा से वृत्रासुर ने विजय की अपेक्षा युद्ध में अपनी मृत्यु को श्रेष्ठ समझा। हे राजा परीक्षित! उसने बड़े बल से अपना त्रिशूल उठाया और भारी वेग से स्वर्ग के राजा पर उसी प्रकार से आक्रमण किया जिस प्रकार कैटभ ने ब्रह्मांड के जलमग्न होने पर श्री भगवान पर बड़े ही बल से आक्रमण किया था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.