श्रीऋषिरुवाच
एवं जिहासुर्नृप देहमाजौ
मृत्युं वरं विजयान्मन्यमान: ।
शूलं प्रगृह्याभ्यपतत् सुरेन्द्रं
यथा महापुरुषं कैटभोऽप्सु ॥ १ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा—अपना शरीर छोड़ने की इच्छा से वृत्रासुर ने विजय की अपेक्षा युद्ध में अपनी मृत्यु को श्रेष्ठ समझा। हे राजा परीक्षित! उसने बड़े बल से अपना त्रिशूल उठाया और भारी वेग से स्वर्ग के राजा पर उसी प्रकार से आक्रमण किया जिस प्रकार कैटभ ने ब्रह्मांड के जलमग्न होने पर श्री भगवान पर बड़े ही बल से आक्रमण किया था।