न नाकपृष्ठं न च पारमेष्ठ्यं
न सार्वभौमं न रसाधिपत्यम् ।
न योगसिद्धीरपुनर्भवं वा
समञ्जस त्वा विरहय्य काङ्क्षे ॥ २५ ॥
अनुवाद
हे समस्त सौभाग्य के स्रोत भगवान्! न तो मुझे ध्रुवलोक में, न स्वर्गलोक में और न ही ब्रह्मलोक में सुख भोगने की इच्छा है। न तो मैं समस्त पृथ्वी के तथा अधोलोकों का सर्वोच्च अधिपति बनना चाहता हूँ और न ही मैं योग शक्तियों का स्वामी बनना चाहता हूँ। आपके चरणकमलों को छोड़कर मोक्ष की भी मुझे कोई लालसा नहीं है।