स तं नृपेन्द्राहवकाम्यया रिपुं
वज्रायुधं भ्रातृहणं विलोक्य ।
स्मरंश्च तत्कर्म नृशंसमंह:
शोकेन मोहेन हसञ्जगाद ॥ १३ ॥
अनुवाद
हे राजन! जब महायोद्धा वृत्रासुर ने अपने शत्रु और अपने भाई के हत्यारे इंद्र को अपने सामने युद्ध के लिए खड़ा देखा तो उसे याद आ गया कि इंद्र ने कैसे क्रूरतापूर्वक उसके भाई का वध किया था। इंद्र के पापों को सोचते हुए वह शोक और विस्मृति से पागल हो गया। व्यंग्य से हँसते हुए उसने इस प्रकार कहा।