श्रीशुक उवाच
त एवं शंसतो धर्मं वच: पत्युरचेतस: ।
नैवागृह्णन्त सम्भ्रान्ता: पलायनपरा नृप ॥ १ ॥
अनुवाद
श्रीशुकदेव गोस्वामी ने कहा - हे राजन्! असुरों के प्रधान सेनापति वृत्रासुर ने अपने सेनापतियों को धर्म के नियमों का उपदेश दिया, किन्तु वे कायर तथा भागने की इच्छा रखने वाले सेनापति, भय से इतने विचलित हो चुके थे कि उन्होंने उसके वचनों को ग्रहण नहीं किया।