श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 10: देवताओं तथा वृत्रासुर के मध्य युद्ध  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  6.10.7 
 
 
श्रीऋषिरुवाच
धर्मं व: श्रोतुकामेन यूयं मे प्रत्युदाहृता: ।
एष व: प्रियमात्मानं त्यजन्तं सन्त्यजाम्यहम् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  महान ऋषि दधीचि ने कहा - मैंने तुम लोगों से धर्म की बातें सुनने के लिए तुमसे अपने शरीर की बलि माँगने पर ही इनकार कर दिया है। अब, यद्यपि मुझे अपना शरीर अत्यन्त प्रिय है, तो भी तुम लोगों के कल्याण के लिए मैं इसको छोड़ दूँगा, क्योंकि मैं जानता हूँ कि यह आज नहीं तो कल अवश्य मुझे छोड़ देगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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