श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 1: अजामिल के जीवन का इतिहास  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  6.1.9 
 
 
श्रीराजोवाच
द‍ृष्टश्रुताभ्यां यत्पापं जानन्नप्यात्मनोऽहितम् ।
करोति भूयो विवश: प्रायश्चित्तमथो कथम् ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज परीक्षित बोले कि मनुष्य को यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि पापकर्म उसके लिए कितना नुकसानदायक है, क्योंकि वह स्वयं देखता है कि अपराधी को सरकार द्वारा दंडित किया जाता है और उसे समाज में तिरस्कृत किया जाता है। साथ ही, वह शास्त्रों और ज्ञानी पंडितों से भी सुनता रहता है कि पापकर्म करने पर मनुष्य को अगले जन्म में नरक में डाल दिया जाता है। फिर भी, इस सब ज्ञान के बावजूद, प्रायश्चित्त करने के बाद भी मनुष्य बार-बार पाप करने को मजबूर हो जाता है। तो ऐसे में प्रायश्चित्त का क्या महत्व है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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