श्रीशुक उवाच
न चेदिहैवापचितिं यथांहस:
कृतस्य कुर्यान्मनउक्तपाणिभि: ।
ध्रुवं स वै प्रेत्य नरकानुपैति
ये कीर्तिता मे भवतस्तिग्मयातना: ॥ ७ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने उत्तर दिया- हे राजन् ! यदि कोई व्यक्ति अपनी अगली मृत्यु से पहले अपने इस जीवन में अपने मन, वचन और शरीर से किए गए पाप कर्मों का प्रायश्चित्त मनुसंहिता और अन्य धर्मशास्त्रों के अनुसार नहीं करता है, तो वह मृत्यु के बाद अवश्य ही नरक में जाएगा और उसे भयंकर कष्ट उठाने पड़ेंगे, जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया है।