श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 1: अजामिल के जीवन का इतिहास  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  6.1.61 
 
 
द‍ृष्ट्वा तां कामलिप्तेन बाहुना परिरम्भिताम् ।
जगाम हृच्छयवशं सहसैव विमोहित: ॥ ६१ ॥
 
अनुवाद
 
  यह शूद्र हल्दी के चूर्ण से अपनी बाँहों को सुहावना बनाकर उस वेश्या को अपने बाहों में भर रहा था। जब अजामिल ने उसे देखा तो उसके मन में सोई हुई काम-वासना जाग उठी और वह माया में फँसकर उसके वशीभूत हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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