वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य
»
अध्याय 1: अजामिल के जीवन का इतिहास
»
श्लोक 61
श्लोक
6.1.61
दृष्ट्वा तां कामलिप्तेन बाहुना परिरम्भिताम् ।
जगाम हृच्छयवशं सहसैव विमोहित: ॥ ६१ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
यह शूद्र हल्दी के चूर्ण से अपनी बाँहों को सुहावना बनाकर उस वेश्या को अपने बाहों में भर रहा था। जब अजामिल ने उसे देखा तो उसके मन में सोई हुई काम-वासना जाग उठी और वह माया में फँसकर उसके वशीभूत हो गया।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.