श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 1: अजामिल के जीवन का इतिहास  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  6.1.48 
 
 
मनसैव पुरे देव: पूर्वरूपं विपश्यति ।
अनुमीमांसतेऽपूर्वं मनसा भगवानज: ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  सर्वशक्तिमान यमराज ब्रह्माजी जितने ही महान हैं, क्योंकि जब वे अपने निवास में या हर किसी के हृदय में परमात्मा की तरह स्थित होते हैं, तो वे ध्यानपूर्वक जीव के पिछले कर्मों का अवलोकन करते हैं और इस प्रकार समझते हैं कि जीव अगले जन्म में कैसे कार्य करेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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