वर्तमानोऽन्ययो: कालो गुणाभिज्ञापको यथा ।
एवं जन्मान्ययोरेतद्धर्माधर्मनिदर्शनम् ॥ ४७ ॥
अनुवाद
जिस तरह वर्तमान वसंत काल भूत तथा भविष्य के वसंत कालों का संकेत देता है, उसी तरह यह जीवन सुख, दु:ख या दोनों के मिश्रण से युक्त होता है। यह मनुष्य के भूतकालीन और भावी जीवन में किए गए धार्मिक और अधार्मिक कार्यों का साक्ष्य प्रस्तुत करता है।