श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 1: अजामिल के जीवन का इतिहास  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  6.1.2 
 
 
प्रवृत्तिलक्षणश्चैव त्रैगुण्यविषयो मुने ।
योऽसावलीनप्रकृतेर्गुणसर्ग: पुन: पुन: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महान ऋषि शुकदेव गोस्वामी! जब तक जीव प्रकृति के भौतिक गुणों के संक्रमण से मुक्त नहीं हो जाता, तब तक उसे विभिन्न प्रकार के शरीर प्राप्त होते हैं जिनमें वह आनन्द या कष्ट पाता है और शरीर के अनुसार उसमें विविध अभिरुचियाँ होती हैं। इन अभिरुचियों का अनुसरण करने से वह प्रवृत्ति मार्ग पर चलता है, जिससे वह स्वर्गलोक तक ऊपर जा सकता है, जैसा कि आप पहले (तीसरे स्कन्ध में) वर्णन कर चुके हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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