श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 6: मनुष्य के लिए विहित कार्य  »  अध्याय 1: अजामिल के जीवन का इतिहास  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  6.1.15 
 
 
केचित्केवलया भक्त्या वासुदेवपरायणा: ।
अघं धुन्वन्ति कार्त्स्‍न्येन नीहारमिव भास्कर: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  केवल एक विरला व्यक्ति, जिसने कृष्ण की सम्पूर्ण और निर्मल भक्ति को अपनाया है, ही पापपूर्ण कार्यों के खरपतवारों को इस तरह उखाड़ सकता है कि उनके दोबारा उगने की कोई संभावना न रहे। वह भक्ति को पूर्ण रूप से अपनाने से ही ऐसा कर सकता है, जैसे सूर्य अपनी किरणों से कोहरे को तुरंत नष्ट कर देता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.