अथ पणयस्तं स्वविधिनाभिषिच्याहतेन वाससाऽऽच्छाद्य भूषणालेपस्रक्तिलकादिभिरुपस्कृतं भुक्तवन्तं धूपदीपमाल्यलाजकिसलयाङ्कुरफलोपहारोपेतया वैशससंस्थयामहता गीतस्तुतिमृदङ्गपणवघोषेण च पुरुषपशुं भद्रकाल्या: पुरत उपवेशयामासु: ॥ १५ ॥
अनुवाद
इसके पश्चात्, चोरों ने पशुवत पुरुषों की हत्या के लिए अपने काल्पनिक अनुष्ठानों के अनुसार, जड़ भरत को नहलाया और नए वस्त्र पहनाए। उन्होंने उसे पशुओं के अनुरूप आभूषणों से सजाया, उसके शरीर पर सुगंधित लेप लगाए और तिलक, चंदन और मालाओं से उसे सजाया। इसके बाद, उन्होंने उसे भरपूर भोजन कराया और देवी काली के समक्ष ले आए। वहां, उन्होंने देवी को धूप, दीप, माला, खील, पत्ते, अंकुर, फल और फूल भेंट किए। इस प्रकार, उन्होंने नर-पशु का वध करने से पहले गीत, स्तुति और मृदंग तथा तुरही आदि बजाकर देवी की पूजा की। इसके पश्चात, उन्होंने जड़ भरत को मूर्ति के समक्ष बैठा दिया।