श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 8: भरत महाराज के चरित्र का वर्णन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  5.8.7 
 
 
तं त्वेणकुणकं कृपणं स्रोतसानूह्यमानमभिवीक्ष्यापविद्धं बन्धुरिवानुकम्पया राजर्षिर्भरत आदाय मृतमातरमित्याश्रमपदमनयत् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  नदी के किनारे बैठे महान् राजा भरत ने एक छोटे से हिरण के बच्चे को नदी में बहता हुआ देखा, जो अपनी माँ से बिछड़ गया था। यह देखकर उनके हृदय में करुणा का भाव जाग उठा। एक सच्चे मित्र की तरह, उन्होंने उस नन्हे हिरण के बच्चे को लहरों से बाहर निकाला, और उसे माँ-विहीन जानकर अपने आश्रम में ले आए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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