श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 6: भगवान् ऋषभदेव के कार्यकलाप  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  5.6.15 
 
 
को न्वस्य काष्ठामपरोऽनुगच्छे-
न्मनोरथेनाप्यभवस्य योगी ।
यो योगमाया: स्पृहयत्युदस्ता
ह्यसत्तया येन कृतप्रयत्ना: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  “ऐसा कौन योगी है जो मन से भी भगवान् ऋषभदेव के आदर्शों पर चल सकता है? उन्होंने उन सभी योग-सिद्धियों का त्याग कर दिया था जिनके लिए दूसरे योगी लालायित रहते हैं। भला ऐसा कौन योगी है जो भगवान् ऋषभदेव की तुलना कर सके?”
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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