यस्य ह पाण्डवेय श्लोकावुदाहरन्ति—
को नु तत्कर्म राजर्षेर्नाभेरन्वाचरेत्पुमान् ।
अपत्यतामगाद्यस्य हरि: शुद्धेन कर्मणा ॥ ६ ॥
अनुवाद
हे महाराज परीक्षित, महाराज नाभि की प्रशंसा में प्राचीन ऋषियों ने दो श्लोक रचे थे। उनमें से एक यह है, “महाराज नाभि के समान सिद्धि और कौन प्राप्त कर सकता है? उनके कार्यों की बराबरी कौन कर सकता है? उनकी भक्ति के कारण भगवान् ने स्वयं उनका पुत्र होना स्वीकार किया था।”