श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 4: भगवान् ऋषभदेव के लक्षण  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  5.4.6 
 
 
यस्य ह पाण्डवेय श्लोकावुदाहरन्ति—
को नु तत्कर्म राजर्षेर्नाभेरन्वाचरेत्पुमान् ।
अपत्यतामगाद्यस्य हरि: शुद्धेन कर्मणा ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाराज परीक्षित, महाराज नाभि की प्रशंसा में प्राचीन ऋषियों ने दो श्लोक रचे थे। उनमें से एक यह है, “महाराज नाभि के समान सिद्धि और कौन प्राप्त कर सकता है? उनके कार्यों की बराबरी कौन कर सकता है? उनकी भक्ति के कारण भगवान् ने स्वयं उनका पुत्र होना स्वीकार किया था।”
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.