श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 3: राजा नाभि की पत्नी मेरुदेवी के गर्भ से ऋषभदेव का जन्म  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  5.3.15 
 
 
यदु ह वाव तव पुनरदभ्रकर्तरिह समाहूतस्तत्रार्थधियां मन्दानां नस्तद्यद्देवहेलनं देवदेवार्हसि साम्येन सर्वान् प्रतिवोढुमविदुषाम् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भगवान, आप अनेक अद्भुत कार्य कर सकते हैं। इस यज्ञ का उद्देश्य केवल पुत्र प्राप्ति करना था, इसलिए हमारी बुद्धि प्रखर नहीं है। हमें जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने का कोई अनुभव नहीं है। निश्चित ही, भौतिक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किये गये इस तुच्छ यज्ञ में आपको आमंत्रित करके, हमने आपके पवित्र चरणों में महान पाप किया है। अत: हे सर्वेश्वर, अपनी असीम कृपा और सम दृष्टि के कारण हमें क्षमा करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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