ये त्विह वै पुरुषा: पुरुषमेधेन यजन्ते याश्च स्त्रियो नृपशून्खादन्ति तांश्च ते पशव इव निहता यमसदने यातयन्तो रक्षोगणा: सौनिका इव स्वधितिनावदायासृक्पिबन्ति नृत्यन्ति च गायन्ति च हृष्यमाणा यथेह पुरुषादा: ॥ ३१ ॥
अनुवाद
इस संसार में ऐसे पुरुष और स्त्रियाँ हैं, जो भैरव या भद्रकाली को नर-बलि चढ़ाते हैं और फिर अपने बलिदानों का मांस खाते हैं। ऐसे यज्ञ करने वालों को मृत्यु के बाद यमराज के निवास पर ले जाया जाता है, जहाँ उनके शिकार, राक्षसों का रूप धारण करके, उन्हें अपनी तेज तलवारों से काट डालते हैं। जिस तरह इस दुनिया में नरभक्षकों ने अपने शिकार का खून पिया, नाचते और गाते हुए खुशी मनाई, उसी तरह उनके शिकार अब बलि देने वालों का खून पीकर उसी तरह खुशी मनाते हैं।