श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 5: सृष्टि की प्रेरणा  »  अध्याय 25: भगवान् अनन्त की महिमा  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  5.25.8 
 
 
य एष एवमनुश्रुतो ध्यायमानो मुमुक्षूणामनादिकालकर्मवासनाग्रथितमविद्यामयं हृदयग्रन्थिं सत्त्वरजस्तमोमयमन्तर्हृदयं गत आशु निर्भिनत्ति तस्यानुभावान् भगवान् स्वायम्भुवो नारद: सह तुम्बुरुणा सभायां ब्रह्मण: संश्लोकयामास ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि भौतिक जीवन से मुक्ति के इच्छुक लोग गुरु परंपरा से मिले गुरु के मुख से अनंतदेव की महिमा सुनते हैं और सदाकाल संकर्षण का ध्यान करते हैं तो भगवान उनके हृदय में प्रवेश कर प्रकृति के तीनों गुणों के सारे कलुषों को दूर कर देते हैं और हृदय की उस कठोर ग्रंथि को काट देते हैं जो सकाम कर्मों द्वारा प्रकृति पर प्रभुत्व पाने की अभिलाषा के कारण अनंत काल से मजबूती के साथ बंधी हुई है। भगवान ब्रह्मा के पुत्र नारद मुनि अपने पिता की सभा में सदैव अनंतदेव के यश का गान करते हैं। वहीं पर वे अपने द्वारा रचे गए शुभ श्लोकों का गान तंबूरे के साथ करते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.